(शहजाद अली हरिद्वार)हरिद्वार। इस्लामिक वर्ष की शुरुआत मोहर्रम के महीने से होती है, जिसे इस्लाम धर्म में गम और अकीदत का महीना माना जाता है। मोहर्रम की 10 तारीख को करबला के मैदान में इस्लाम और इंसानियत की हिफाजत के लिए हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 जानिसार साथियों ने जो कुर्बानी दी, उसे आज भी पूरी दुनिया में याद किया जाता है।
इसी सिलसिले में हरिद्वार जनपद के बहादराबाद, सलेमपुर, इब्राहिमपुर, पीठबस्ती, ज्वालापुर डाँडी, जगजीतपुर सहित कई ग्रामीण क्षेत्रों में मोहर्रम पर ताजियादारी और जुलूस निकाले गए।
ताजियों को बेहद खूबसूरती से सजाया गया था। अकीदतमंदों ने पहले मजलिस में हिस्सा लिया,
फातिहा पढ़ी और फिर गमगीन माहौल में जुलूस निकालकर करबला के शहीदों को श्रद्धांजलि दी। जुलूस में शामिल लोग “या हुसैन”, “हुसैन ज़िंदाबाद”, “शहीद-ए-कर्बला जिन्दा हैं” जैसे नारों के साथ मातम करते हुए आगे बढ़ते गए।
रात में जुलूस के अंतिम पड़ाव पर अखाड़ा प्रदर्शन किया गया, जिसमें युवाओं और बच्चों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
अखाड़े के बाद ताजियों को पूरे आदर और सम्मान के साथ सुपुर्द-ए-खाक किया गया। ग्रामीणों ने आयोजन को शांतिपूर्ण और गरिमामय बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस अवसर पर ग्राम प्रधान नीरज चौहान, पूर्व प्रधान कृष्ण कुमार लाल और समाजसेवी शशि चौहान विशेष रूप से उपस्थित रहे।
इन सभी जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आयोजन में सक्रिय भागीदारी निभाई और ग्रामीणों के साथ मिलकर पूरे कार्यक्रम को सफलतापूर्वक संपन्न कराया।
ग्राम प्रधान नीरज चौहान ने मोहर्रम के अवसर पर कहा,
“हजरत इमाम हुसैन ने करबला के मैदान में अपने पूरे परिवार और साथियों के साथ जो बलिदान दिया, वह केवल इस्लाम धर्म के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने अन्याय, ज़ुल्म और भ्रष्ट सत्ता के खिलाफ आवाज़ उठाकर यह साबित किया कि सच्चाई की राह में कितनी भी कठिनाइयाँ आएं, उससे पीछे नहीं हटना चाहिए। उनकी कुर्बानी आज भी दुनिया भर में इंसाफ और हक की आवाज़ का प्रतीक है।”
उन्होंने आगे कहा,
“गांव में जिस भाईचारे और सौहार्द के साथ सभी समुदायों ने मिलकर इस आयोजन को संपन्न कराया, वह इस बात का संकेत है कि इंसानियत और एकता आज भी जिंदा है। हमारे युवाओं ने जुलूस की व्यवस्था में बढ़-चढ़कर भाग लिया, यह देखकर गर्व होता है।”पूर्व प्रधान कृष्ण कुमार लाल ने भी कहा कि करबला की घटना त्याग, बलिदान और धैर्य का पाठ पढ़ाती है। उन्होंने कहा कि मोहर्रम हमें यह सिखाता है कि जब ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने का समय हो, तो खामोशी नहीं, बल्कि हिम्मत से काम लेना चाहिए।
समाजसेवी शशि चौहान ने कहा,
“आज के समय में जब समाज में नफरत और गलतफहमियां फैलाने की कोशिशें होती हैं,
ऐसे आयोजन हमें जोड़ने का काम करते हैं। करबला का पैगाम सिर्फ शहीदों की याद नहीं, बल्कि इंसानियत, भाईचारे और सच्चाई की बुनियाद है।”जुलूस के दौरान मातम, नौहा, और सोजखानी के माध्यम से करबला की दर्दनाक दास्तान को जीवंत किया गया। कई स्थानों पर स्थानीय अंजुमनों ने लंगर और सबील (ठंडे पानी व शरबत की सेवा) का आयोजन किया, जिसमें राहगीरों व जुलूस में शामिल लोगों ने लाभ उठाया।
प्रशासनिक स्तर पर भी कार्यक्रम को लेकर पूरी सतर्कता बरती गई। पुलिस प्रशासन और जिला प्रशासन की ओर से सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम किए गए थे।
संवेदनशील क्षेत्रों में अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती की गई, जबकि ड्रोन कैमरों के माध्यम से निगरानी रखी गई। यातायात को सुव्यवस्थित बनाए रखने के लिए ट्रैफिक पुलिस को भी तैनात किया गया था।जुलूस के मार्ग पर विशेष रूप से साफ-सफाई कराई गई थी और जगह-जगह रोशनी की व्यवस्था भी की गई थी।
स्थानीय युवाओं की टीमों ने भी ट्रैफिक और व्यवस्था संभालने में पुलिस का सहयोग किया।इस मोहर्रम पर क्षेत्र में ऐसा माहौल देखने को मिला, जो भाईचारे, अमन और इंसानियत की मिसाल बना। नफरत के इस दौर में हजरत इमाम हुसैन की कुर्बानी हमें याद दिलाती है
कि इंसाफ और सच्चाई की राह पर चलना ही असली इबादत है। मोहर्रम का यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक बना, बल्कि समाज में एकता और सद्भाव का संदेश भी देकर गया।
