(शहजाद अली हरिद्वार)हरिद्वार में जिला पंचायत बोर्ड की बैठक के बाद जो घटना सामने आई, वह लोकतंत्र और प्रशासनिक मर्यादाओं पर एक करारा तमाचा है। कल्याणपुर उर्फ नारसन कलां के जिला पंचायत सदस्य अरविंद राठी का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वे जल निगम के सहायक अभियंता नीरज को सरेआम धमकाते और अपमानजनक भाषा का प्रयोग करते नजर आ रहे हैं।
वीडियो में नेताजी न सिर्फ “तू-तड़ाक” करते हैं, बल्कि अधिकारी को “दिमाग ठिकाने लगा देने” जैसी धमकी भी देते हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि वहां मौजूद
किसी अधिकारी ने उन्हें टोकने की हिम्मत नहीं दिखाई। सहायक अभियंता भी इसे नेताजी का “अधिकार” बताकर चुप हो गए।
यह घटना न सिर्फ एक सरकारी अफसर की गरिमा को ठेस पहुंचाती है, बल्कि यह दर्शाती है कि सत्ता में होने का घमंड किस तरह लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचल सकता है।
जिस पार्टी को ‘संस्कार’ और ‘मर्यादा’ का प्रतीक बताया जाता है, उसके नेता इस तरह की भाषा और व्यवहार का प्रदर्शन कर रहे हैं, तो यह सोचने की जरूरत है कि असली संस्कार कहां हैं?
जनता सोशल मीडिया पर इस घटना की कड़ी आलोचना कर रही है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या सत्ता पक्ष से जुड़ाव का मतलब है कि कोई भी अधिकारी को अपमानित कर सकता है? क्या अफसरों की चुप्पी डर का परिणाम है?
ज़रूरत है कि ऐसे मामलों में सिर्फ निंदा न हो, बल्कि सख्त कार्रवाई की जाए। नेताजी को सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगनी चाहिए और पार्टी को भी इस पर स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए। लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि जनसेवक होते हैं, दबंग नहीं।
