(शहजाद अली हरिद्वार)उत्तराखण्ड के भराड़ीसैंण, गैरसैंण में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने सहभागिता करते हुए विदेशी राजनयिकों और सुप्रसिद्ध योगाचार्यों का गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने उपस्थित अतिथियों को उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक पहचान के प्रतीक चिन्ह और पारंपरिक उत्तराखण्डी टोपी भेंट कर सम्मानित किया।
यह आयोजन योग की वैश्विक स्वीकृति और उत्तराखण्ड की इस दिशा में भूमिका को रेखांकित करने वाला रहा।
मुख्यमंत्री ने मेक्सिको, फिजी, नेपाल, सूरीनाम, मंगोलिया, लातविया, श्रीलंका और रूस के राजदूतों व उच्चाधिकारियों का स्वागत करते हुए कहा कि देवभूमि उत्तराखण्ड न केवल योग की जन्मस्थली है,
बल्कि आज यह योग और आयुष की वैश्विक राजधानी के रूप में उभर रही है। उन्होंने कहा कि राज्य की पवित्रता, आध्यात्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य इसे योग, ध्यान और आयुर्वेद के लिए एक उपयुक्त स्थल बनाते हैं।
उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व और आग्रह पर आज पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है।
2014 में प्रधानमंत्री जी के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र संघ ने 177 से अधिक देशों के समर्थन से 21 जून को “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” के रूप में मान्यता दी। यह भारत की सांस्कृतिक विरासत की वैश्विक स्वीकृति का प्रमाण है।
मुख्यमंत्री ने स्मरण किया कि प्रधानमंत्री ने बाबा केदारनाथ की पावन धरती से “यह दशक उत्तराखण्ड का दशक” घोषित किया था। यह वाक्य राज्यवासियों के लिए न केवल प्रेरणा है,
बल्कि दिशा और संकल्प का आह्वान भी है। प्रधानमंत्री का आयुष, योग और वेलनेस सेक्टर को लेकर दूरदर्शी दृष्टिकोण उत्तराखण्ड के विकास की धुरी बन रहा है।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि राज्य सरकार उत्तराखण्ड को योग के वैश्विक केन्द्र के रूप में स्थापित करने के लिए कृतसंकल्प है। यहां की हिमालयी प्राकृतिक संपदा, शुद्ध जलवायु और आध्यात्मिक वातावरण,
योग एवं आयुर्वेद के अभ्यास के लिए श्रेष्ठ वातावरण प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि हमारा राज्य वेलनेस टूरिज्म के क्षेत्र में वैश्विक गंतव्य बनने की पूर्ण क्षमता रखता है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड की संस्कृति में योग और आयुर्वेद सदियों से रचे-बसे हैं। यह भूमि ऋषियों, योगियों और वैद्यों की तपस्थली रही है। यहां से औषधीय गुणों वाली जड़ी-बूटियों की आपूर्ति न केवल भारत में बल्कि विश्व बाजार में भी होती है।
मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि राज्य में 100 वर्षों से अधिक पुराने आयुर्वेदिक संस्थान, जैसे ऋषिकुल और गुरुकुल आयुर्वेद महाविद्यालय, आज भी आयुर्वेद के ज्ञान का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड के पास आयुर्वेद, योग और पंचकर्म के क्षेत्र में अत्यधिक प्रशिक्षित मानव संसाधन मौजूद है। यहां हिमालयी गुणवत्ता वाली जड़ी-बूटियों के उत्पादन, प्रसंस्करण और उनके एक्सट्रैक्ट के साझा व्यापार की अपार संभावनाएं हैं।
उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड के पारंपरिक सुपरफूड्स जैसे मंडुवा, झंगोरा, भट्ट, बिच्छुघास, किलमोडा आदि का मूल्य संवर्धन और आधुनिक पैकेजिंग कर अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में इनका आदान-प्रदान किया जा सकता है।
साथ ही जीवनशैली जनित रोगों की रोकथाम और वेलनेस के लिए संयुक्त अनुसंधान एवं नवाचार कार्यों की भी असीम संभावनाएं हैं।
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर उपस्थित सभी विदेशी मेहमानों, योगाचार्यों और अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए आशा जताई कि यह कार्यक्रम भारत की प्राचीन परंपरा “योग” को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाने में एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित होगा।
इस अवसर पर योग गुरु पद्मश्री स्वामी भारत भूषण, विधायक श्री अनिल नौटियाल, सचिव श्री दीपेन्द्र कुमार चौधरी, गढ़वाल कमिश्नर श्री विनय शंकर पांडे, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के उपाध्यक्ष डॉ. विनय रुहेला, सूचना महानिदेशक श्री बंशीधर तिवारी, जिलाधिकारी चमोली श्री संदीप तिवारी, पुलिस अधीक्षक श्री सर्वेश पंवार सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
इस आयोजन ने उत्तराखण्ड की योग, आयुर्वेद और संस्कृति को वैश्विक पटल पर फिर से स्थापित करने की दिशा में एक मजबूत कदम के रूप में अपनी पहचान दर्ज कराई है।
