(शहजाद अली हरिद्वार) हरिद्वार।उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक सौंदर्य से जुड़े लोकपर्व हरेला का उत्सव इस वर्ष भी पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
प्रकृति से जुड़ाव को बढ़ावा देने वाले इस पर्व को इस बार जीआरपी परिसर में विशेष रूप से मनाया गया, जहां प्रकृति प्रेमी आईपीएस अधिकारी तृप्ति भट्ट (एसपी जीआरपी) के नेतृत्व में व्यापक वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
हरेला पर्व पर जीआरपी परिसर में फलदार, छायादार और औषधीय पौधे रोपे गए। परिसर में जामुन, अमरूद, आम, आंवला, अमलतास, नीम, अर्जुन, पापड़ी और कनेर जैसे पौधों की हरियाली फैल गई।
इस शुभ अवसर पर एसपी तृप्ति भट्ट ने स्वयं जामुन का पौधा लगाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया, जबकि एएसपी अरुणा भारती ने अमरूद का पौधा रोपा।
इस वृक्षारोपण कार्यक्रम में 300 से अधिक पौधे लगाए गए और इसे सिर्फ एक दिन का आयोजन न मानते हुए पूरे सावन माह तक चलाने का संकल्प लिया गया।
यह अभियान महज पौधे लगाने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि समस्त जीआरपी एवं आवासीय परिसर में सफाई अभियान भी चलाया गया।
जवानों ने न केवल पौधों को रोपा, बल्कि पूरे परिसर की सफाई कर स्वच्छता का संदेश भी दिया।
वृक्षारोपण कार्यक्रम के दौरान एसपी तृप्ति भट्ट ने जवानों को संबोधित करते हुए कहा,
“एक पौधा मां के नाम” – हर जवान को चाहिए कि वह अपने द्वारा लगाए गए पौधे को अपनी मां की तरह स्नेह और जिम्मेदारी से संभाले और उसकी देखभाल करे।
उन्होंने आगे कहा कि उत्तराखंड प्राकृतिक रूप से वन संपदा का खजाना है, जिसे और समृद्ध बनाने की जिम्मेदारी हम सभी की है।“हरेला प्रकृति से सामंजस्य बैठाने का पर्व है।
यदि हर व्यक्ति एक पौधा लगाए और उसकी देखभाल करे, तो हम न केवल पर्यावरण को बचा सकते हैं, बल्कि भावी पीढ़ियों को भी एक स्वच्छ और हरित भविष्य दे सकते हैं।” – एसपी तृप्ति भट्ट
कार्यक्रम की सबसे बड़ी विशेषता रही जवानों का उत्साह। उन्होंने पूरे उत्सव को एक त्यौहार की तरह मनाया, न केवल वृक्षारोपण में भाग लिया बल्कि आपसी सहयोग और एकजुटता से पर्यावरणीय जागरूकता की मिसाल पेश की।
यह आयोजन केवल पर्यावरण की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण रहा। जवानों ने अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम, सेवा और संरक्षण की भावना को मूर्त रूप दिया।
हरेला पर्व के इस आयोजन से यह स्पष्ट संदेश गया कि वृक्षारोपण कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि एक सामूहिक दायित्व है।
तृप्ति भट्ट जैसी अधिकारियों की अगुवाई में जब वर्दीधारी जवान पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आते हैं, तो यह समाज के अन्य वर्गों के लिए भी प्रेरणा बनता है।
उपसंहार:
जीआरपी परिसर में मनाया गया यह हरेला उत्सव न केवल हरियाली और पर्यावरण को समर्पित रहा, बल्कि जवाबदेही, संवेदनशीलता और संस्कृति का भी प्रतीक बना।
“एक पौधा मां के नाम” जैसी पहल ने इस आयोजन को भावनात्मक गहराई प्रदान की।
यह उम्मीद की जा सकती है कि इस प्रकार के आयोजनों से उत्तराखंड सहित पूरे देश में पर्यावरण संरक्षण की चेतना फैलेगी और लोग हरेला पर्व को सिर्फ एक परंपरा नहीं,
बल्कि एक जिम्मेदारी और संकल्प के रूप में अपनाएंगे।
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