(शहजाद अली हरिद्वार) हरिद्वार। गंगा तटों की पावन नगरी हरिद्वार में आज से चार दिनों तक चलने वाले लोकआस्था के महापर्व छठ की शुरुआत श्रद्धा और उत्साह के साथ हो गई।
हर तरफ “छठी मइया” के जयघोष गूंज रहे हैं, घाटों को सजाया जा रहा है और वातावरण में भक्ति की सुगंध फैली हुई है। पूर्वांचल समाज के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला यह पर्व अब पूरे भारतवर्ष के साथ-साथ विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुका है।
नहाय-खाय के साथ हुई छठ पर्व की शुरुआत
रविवार को नहाय-खाय के साथ छठ पर्व का शुभारंभ हुआ। इस दिन श्रद्धालु महिलाएं प्रातः गंगा स्नान कर घरों में शुद्धता का विशेष ध्यान रखती हैं। इस अवसर पर हरिद्वार के घाटों पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।
महिलाएं गंगाजल से स्नान करने के बाद पूजा के लिए मिट्टी के चूल्हे पर लौकी-भात और कद्दू की सब्जी बनाकर प्रसाद तैयार करती हैं। यह दिन शुद्धता, सात्विकता और संयम का प्रतीक माना जाता है, जो आने वाले दिनों में खरना और संध्या-अरघ्य की तैयारी का आरंभ होता है।
विष्णुलोक कॉलोनी से निकली भव्य कलश यात्रा
हरिद्वार की विष्णुलोक कॉलोनी में आज छठ पर्व की शुरुआत एक भव्य कलश यात्रा के आयोजन से हुई। यात्रा का शुभारंभ विधिवत पूजा-अर्चना के साथ किया गया।
इस अवसर पर जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर उमाकांतानंद सरस्वती महाराज मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने यात्रा का शुभारंभ दीप प्रज्वलित कर किया और श्रद्धालुओं को आशीर्वाद दिया।
कलश यात्रा में महिलाओं की सहभागिता देखते ही बनती थी। सैकड़ों महिलाएं पारंपरिक पूर्वांचली परिधान – पीली-लाल साड़ियों में, सिर पर कलश धारण किए हुए, भक्ति गीत गातीं और नाचती-गाती हुई चल रही थीं। महिलाएं “छठी मइया की जय” और “सूर्य देवता की जय” के जयघोष करती हुई यात्रा को जीवंत बना रही थीं।
यात्रा में पुरुष, बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल हुए। रास्ते भर भक्तों के लिए जगह-जगह जल, शरबत और फल वितरण के स्टॉल लगाए गए थे।
कलश यात्रा विष्णुलोक कॉलोनी से प्रारंभ होकर प्रेम नगर, दुर्गानगर, संजय कॉलोनी होते हुए प्रेम नगर आश्रम घाट तक पहुंची, जहां गंगा तट पर पूजा-अर्चना के साथ इसका समापन हुआ।
छठ पर्व का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व
छठ महापर्व भारतीय संस्कृति का एक अनोखा उत्सव है, जो प्रकृति, सूर्य और जल के प्रति आभार प्रकट करने का प्रतीक है। यह पर्व मुख्यतः सूर्य देवता और छठी मइया की आराधना को समर्पित है। पूर्वांचल समाज के लोग मानते हैं कि सूर्य देव जीवनदाता हैं और छठी मइया संतान, स्वास्थ्य व समृद्धि प्रदान करती हैं।
यह पर्व आत्मसंयम, शुद्धता और समर्पण का अद्भुत उदाहरण है। महिलाएं न केवल निर्जला व्रत रखती हैं बल्कि पूरे परिवार की भलाई के लिए सूर्यास्त और सूर्योदय दोनों समय अर्घ्य अर्पित करती हैं। व्रत के दौरान अनुशासन, पवित्रता और सादगी का विशेष ध्यान रखा जाता है।
कलश यात्रा में नेताओं और समाजसेवियों की उपस्थिति
कलश यात्रा में कई स्थानीय नेता और समाजसेवी भी शामिल हुए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजबीर चौहान ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि —
> “छठ महापर्व अब केवल बिहार या पूर्वांचल तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह पूरे भारत और विदेशों में भी आस्था और एकता का प्रतीक बन चुका है। यह पर्व भारतीय संस्कृति की गहराई, परिवारिक एकता और मातृशक्ति की ताकत को दर्शाता है।”
उन्होंने आगे कहा कि छठ केवल पूजा नहीं, बल्कि यह संस्कार और संस्कृति का पर्व है, जो व्यक्ति को संयम और अनुशासन का संदेश देता है। उन्होंने आयोजकों और पूर्वांचल समाज के सभी सदस्यों को इस भव्य आयोजन के लिए शुभकामनाएं दीं।
श्रद्धा और उत्साह से सजी हरिद्वार की गलियां
हरिद्वार शहर की गलियों में छठ पर्व की रौनक दिखाई दे रही है। जगह-जगह संगीत की धुनों पर पारंपरिक गीत बज रहे हैं — “केलवा जे पनिया के धार…” और “छठी मइया तोहरे बिना लागे नहीं सुहावन” जैसे भक्ति गीत वातावरण को भक्तिमय बना रहे हैं।
स्थानीय बाजारों में पूजा सामग्री, सूप, डाला, नारियल, फल, गन्ना, ठेकुआ और कपड़ों की खरीदारी जोरों पर है। विक्रेताओं के चेहरों पर खुशी झलक रही है क्योंकि छठ पर्व स्थानीय व्यापार को भी गति देता है।
घाटों पर तैयारियां पूरी
नगर निगम और जिला प्रशासन ने छठ पर्व को देखते हुए घाटों पर विशेष साफ-सफाई और सुरक्षा व्यवस्था की है। गंगा घाटों पर अतिरिक्त रोशनी, बैरिकेडिंग और एनडीआरएफ टीमों की तैनाती की गई है। महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए महिला पुलिस कर्मियों की भी ड्यूटी लगाई गई है।
प्रेम नगर आश्रम घाट, हर की पैड़ी, सप्तऋषि घाट और श्यामपुर घाट पर श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में पहुंचने की संभावना है। शाम को छठी मइया की आरती और सूर्य को अर्घ्य देने का दृश्य हरिद्वार की धार्मिक भव्यता को और भी निखारेगा।
चार दिवसीय पर्व की आगे की क्रमवार विधियां
छठ महापर्व चार दिनों तक चलता है –
1. पहला दिन (नहाय-खाय) – श्रद्धालु गंगा स्नान कर शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं।
2. दूसरा दिन (खरना) – व्रती पूरे दिन उपवास रखकर शाम को गुड़ की खीर, रोटी और फल का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
3. तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य) – महिलाएं साज-सज्जा के साथ घाटों पर जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं।
4. चौथा दिन (उषा अर्घ्य) – अंतिम दिन व्रतियों द्वारा उदयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर पर्व का समापन होता है।
हरिद्वार में इस क्रम को निभाने के लिए पूर्वांचल समाज की ओर से कई घाटों पर विशेष पूजा व्यवस्थाएं की गई हैं।
छठ की भव्यता में एकता का संदेश
छठ पर्व धार्मिकता के साथ सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। यह पर्व बताता है कि जब मन में आस्था और हृदय में भक्ति हो, तो हर कठिनाई आसान हो जाती है। हरिद्वार जैसे पवित्र स्थान पर इस पर्व का आयोजन न केवल स्थानीय श्रद्धालुओं बल्कि देशभर से आए लोगों के लिए भी प्रेरणा का केंद्र है।
हरिद्वार की विष्णुलोक कॉलोनी में निकली यह कलश यात्रा एकता, श्रद्धा और संस्कृति का जीवंत उदाहरण बनी। यह यात्रा लोगों को इस बात का संदेश देती है कि भारतीय संस्कृति की जड़ें हमारी आस्था में गहराई से जुड़ी हैं।
निष्कर्ष
छठ महापर्व हर वर्ष लोगों के जीवन में नई ऊर्जा और भक्ति की भावना लेकर आता है। हरिद्वार की पवित्र धरती पर जब पूर्वांचल समाज की महिलाएं कलश धारण कर गंगाजल से स्नान करती हैं, तो वह दृश्य केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव का प्रतीक बन जाता है।
गंगा की लहरों पर झिलमिलाते दीप, श्रद्धालुओं के गीत और सूर्य देव की आराधना का दृश्य हर किसी के मन को भक्ति से भर देता है।
इस प्रकार हरिद्वार में छठ महापर्व का शुभारंभ न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह दर्शाता है कि भारत की विविधता में एकता और संस्कृति की गहराई आज भी जीवंत है




































